Saturday, January 29, 2011

२६ जनवरी की कहानी… प्रशासन की मनमानी

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अपने वादे के मुताबिक़ छब्बीस जनवरी को गाज़ियाबाद कलेक्ट्रेट पर तिरंगे की अस्मिता और इज्जत के प्रति लापरवाह प्रशासन के खिलाफ काला झण्डा ले कर जब मै पहुँचा तो मै अकेला था और वहाँ पन्द्रह बीस पुलिस वाले मौजूद थे. झंडारोहण का कार्यक्रम जिलाधिकारी कार्यालय पर न हो कर हरसाऊं पुलिस लाइन में स्थानांतरित कर दिया गया था इस लिए यहाँ न तो कोई मीडिया थी और न ही कोई आम जनता। मेरे पहुँचते ही दस पंद्रह पुलिस कर्मियों ने मुझे अकेला पा कर पकड़ लिया और हाथापाई करते हुए मेरा काला झण्डा छीन लिया। मैंने जो पत्र प्रशासन के लिए लिखे थे वह भी पुलिस वालों ने ले लिए और बताया की तुम्हारा झण्डा और पत्र आदि जमा कर दिये जाएँगे।

यद्यपि पकड़ने वाले पुलिस कर्मी तिरंगे को ले कर मेरे संघर्ष को उचित ठहरा रहे थे और बोले कि हम तो ड्यूटी से बंधे हुए हैं लेकिन हम भी तुम्हारी बात से इत्तेफाक करते हैं।  पुलिस वालों ने मेरी बात को आगे बढ़ाने की भी बात की और अपना फोन नंबर आदि भी दिया।

आप को इस संबंध मे बताना चाहता हूँ कि मै पिछले तीन चार सालों से तिरंगा के नाम पर गुटखे का नाम बदलने के संबंध मे संघर्ष कर रहा हूँ मैंने इस संबंध मे  हजारों पत्र प्रशासन को लिखे, धरने दिये, भूख हड़ताल की, लेकिन आज तक मेरी कहीं सुनवाई नहीं हुई।  इसी संबंध मे विरोध प्रदर्शन करते समय मुझे एस एस पी  रघुवीर लाल (जो शायद रास्ट्रपति से सम्मानित हैं) ने मुझे अपने कार्यालय मे बुलाया था.... आधे घंटे की बहस के बावजूद मुझे धमकियाँ दीं और  मुकदमा अपराध संख्या 371/2010 धारा 153 क भ0दँ0सं0व धारा 3 पी पी ए एक्ट के तहत मुझे जेल भेजा और मेरा रिक्शा भी जब्त कर लिया गया था । जिससे  रात भर जेल मे रहने के बाद अगले दिन जमानत पर छूटा। जब कि मै हमेशा कोई कार्यवाही करने से एक महीने पहले सभी अधिकारियों को सूचित कर देता हूँ,।

कोर्ट मे आजतक मेरी फाइल नहीं खोली गयी है और न ही मेरा दोष सिद्ध करने की कोशिश की गयी है, प्रशासन की मनमानी से तिरंगे का अपमान निरंतर जारी है... और जारी है आज़ाद पुलिस का संघर्ष भी ...

भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष का ऐलान ... चलें दिल्ली

भ्रष्टाचार के खिलाप एक गैर राजनीतिक जनयुद्ध में भाग लेने का आमंत्रण.......
इसमें भाग लेना आपके लिए उतना ही जरूरी है जितना आप अपने बच्चों और परिवार की रक्षा में भाग लेते हैं.....क्योकि शर्मनाक स्तर का भ्रष्टाचार अब एक राष्ट्रिय आपदा बन चुका है जिसे देश व्यापी जनयुद्ध से ही ख़त्म किया जा सकता है........
जागरूक नागरिकों और मित्रों  30 जनवरी 2011 को नई दिल्ली के रामलीला मैदान जो श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविक सेंटर के सामने है, मिंटो रोड के पास। करीबी मेट्रो स्टेशन है नई दिल्ली रेलवे स्टेशन ,में अरविन्द केजरीवाल,किरन बेदी,अन्ना हजारे तथा देश के कई गणमान्य लोग और संस्था जो देश में भ्रष्टाचार को मिटाने तथा देश में बेहतर व्यवस्था के लिए सम्पूर्ण पारदर्शिता के लिए संघर्षरत हैं के नेतृत्व में पैदल मार्च दोपहर एक बजे से है जंतर-मंतर तक.....ये पैदल मार्च इस देश में उच्च स्तर के भ्रष्टाचारियों को सजा देने के लिए एक सख्त कानून तथा जनता द्वारा तैयार एक प्रभावी लोकपाल को भी पास करवाने के लिए सरकार पर दवाब है.........ये उस जनयुद्ध की शुरुआत है जो इस देश में भ्रष्टाचारियों के ताकत को ख़त्म करने तथा भ्रष्टाचार के खिलाप लड़ने वालों को हर हाल में सुरक्षा देने के लिए 30 जनवरी के बाद भी मजबूती से काम करेगा.....
अतः आप लोगों से आग्रह और निवेदन है की आप लोग अपना कीमती समय निकालकर इस जनयुद्ध तथा पैदल मार्च में जरूर भाग लें तथा रामलीला मैदान में 12 से 12 .30 तक जरूर पहुँच जायें....पार्किंग इत्यादि की व्यवस्था दिल्ली के ट्राफिक पुलिस तथा स्वयं सेवकों द्वारा है.....लेकिन फिर भी आप लोग सार्वजनिक यातायात के साधन जैसे बस,मेट्रो इत्यादि का ही प्रयोग करें तो बेहतर होगा......ये जनयुद्ध सिर्फ एक अरविन्द केजरीवाल या किरण बेदी का नहीं बल्कि आप सबका है तथा आप सब इसके आयोजक,प्रायोजक तथा योद्धा हैं.......इसे आप अपना युद्ध समझिये सत्य,न्याय और ईमानदारी की रक्षा के लिए.....आप अपना या अपने संस्था का पोस्टर और बेनर भी इसमें लेकर आ सकते हैं तथा इस आयोजन की खबर अपने ब्लॉग पर भी लिख सकते हैं......
आशा है आप लोग अपने दोस्तों,सहयोगियों तथा समस्त परिवार के साथ इस महायुद्ध में तन,मन से जरूर भाग लेंगे......अगर हो सके तो इ .मेल  के जवाब में  आने की सूचना की पुष्टि भी कर दें....
azadpolice@gmail.com


ज्यादा जानकारी आपको इन ब्लॉग तथा फेसबुक पर मिल जायेगा.....
http://gantantradusrupaiyaekdin.blogspot.com/2011/01/30-2011.html
http://www.indiaagainstcorruption.org/
http://jantakireport.blogspot.com/2011/01/blog-post_23.html#comments
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Wednesday, January 26, 2011

स्वाभिमान टाइम्स में आज़ाद पुलिस

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२६ जनवरी को काला झण्डा

P180710_12.24_[01]आज़ाद पुलिस ने जिलाधिकारी गाज़ियाबाद को अपने प्रार्थनापत्र में तिरंगा गुटखे का नाम बदलने सम्बन्धी ज्ञापन दिया था और एक दिन की भूख हड़ताल भी की थी, तथा यह भी चेतावनी दी थी कि यदि तिरंगे का अपनान नहीं रोका गया तो छब्बीस जनवरी को कलेक्ट्रेट पर  जिलाधिकारी को काला झण्डा दिखा कर प्रशासन के रवैये के प्रति अपना विरोध प्रकट करेगा.  इसके बावज़ूद प्रशासन द्वारा इस सम्बन्ध में कोई रूचि नहीं दिखाई गयी तो आज छब्बीस जनवरी को आज़ाद पुलिस ब्रह्मपाल काला झण्डा ले कर कलेक्ट्रेट परिसर में पहुँचे… इस से पहले कि वो अपना विरोध प्रकट करने जिलाधिकारी तक पहुँचते निहत्थे और अकेले ब्रह्मपाल को पुलिस वालों ने पकड़ लिया और काला झण्डा और उसके पत्र आदि जब्त कर लिए. इस तरह प्रशासन की शक्ति के आगे एक जज़्बा फिर बेबस नज़र आया.

Tuesday, January 11, 2011

तिरंगा गुटखे का नाम बदलने के लिए आजाद पुलिस का संघर्ष

आजाद पुलिस ब्रह्म पाल सालों से पुलिस प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और दहेज पोलियो जैसी सामाजिक मुद्दों पर अपना अथक संघर्ष कर रहे हैं... इसी क्रम में आज़ाद पुलिस द्वारा  तिरंगे के नाम पर तिरंगा गुटखा का नाम बदलने और तिरंगे के नाम पर इस तरह की नशीली चीज़ों का नाम रखने की अनुमति न दिए जाने को ले कर काफी समय से प्रशासन को सैकड़ों पत्र लिखा जा चुका है लेकिन प्रशासन द्वारा इस सम्बन्ध में न तो कोई  सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है और न लिखे गए प्रार्थनापत्रों का कोई जवाब दिया गया है. 

सरकार और प्रशासन की बंद आँखों को खोलने और तिरंगे की अस्मिता की रक्षा के लिए आज़ाद पुलिस द्वारा दिनांक १४-१२-२०१० को जिलाधिकारी गाज़ियाबाद को एक पत्र लिखा गया था जिसमे कहा गया था कि एक गुथ्खे का नाम तिरंगे के नाम पर रखने से तिरंगे को ले कर गलत सन्देश जाता है. अतः तिरंगा गुटखे पर तत्काल रोक लगनी चाहिए जब तक कि इसका नाम तिरंगे से बदल कर कुछ और न किया जाय. अन्यथा दिनांक ११-०१-२०११ को गाज़ियाबाद जिलाधिकारी के कार्यालय के सामने उपवास कर अपना विरोध दर्ज कराएगा लेकिन इस पर भी प्रशासन द्वारा कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. 

इस कारण ब्रह्मपाल ने दिनांक ११-०१-११ को जिलाधिकारी के कार्यालय पर दिन भर का उपवास कर अपना विरोध दर्ज करवाया और एक और ज्ञापन दिया कि यदि इसके बावजूद भी प्रशासन तिरंगा गुटखे का नाम परिवर्तन कराने में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाती है तो चेतावनी दी जाती है कि छब्बीस जनवरी २०११ को जिलाधिकारी कार्यालय पर तिरंगे की जगह काला झंडा फहराने की कोशिश करेगा क्योंकि प्रशासन में किसी भी तरह तिरंगे को ले कर इज्जत नहीं है. इसी लिए प्रशासन को तिरंगा फहराने का कोई अधिकार नहीं है. इसके अतिरिक्त यह भी लिखा कि यदि प्रार्थी के प्रति कोई अनहोनी या दुर्घटना होती है तो उसके लिए प्रशासन कफन न खरीदे क्योकि आज़ाद पुलिस ब्रह्मपाल ने पहले ही सोलह विभागों में अपना कफ़न जमा करवा दिया है. या तो आज़ाद पुलिस को तिरंगे की अस्मिता के लिए न्याय दिया जाय अथवा उसपर प्रशासन को कफ़न डालने की तैयारी कर लेनी चाहिए. 


तिरंगा गुटखा तिरंगे और भारत की अस्मिता का अपमान है - आज़ाद पुलिस



तिरंगा भारत की अस्मिता और स्वाधीनता का प्रतीक है. आज़ादी के काफी वर्षों बाद आम जनता को इस बात की स्वतंत्रता दी गयी है कि हर भारतीय नागरिक झंडे को फहरा सकता है. किन्तु इसके साथ यह शर्त है कि तिरंगे का किसी भी प्रकार अपमान न हो इसके लिए नियम पहले से ही तय किये गए हैं,... तिरंगा फहराने और राष्ट्रगान के भी नियम तय किये गए हैं जिसका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है -
- आजादी से ठीक पहले 22 जुलाई, 1947 को तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया। तिरंगे के निर्माण, उसके साइज और रंग आदि तय हैं।
- फ्लैग कोड ऑफ इंडिया के तहत झंडे को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाएगा।
- उसे कभी पानी में नहीं डुबोया जाएगा और किसी भी तरह नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। यह नियम भारतीय संविधान के लिए भी लागू होता है।
- कानूनी जानकार डी. बी. गोस्वामी ने बताया कि प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की धारा-2 के मुताबिक, फ्लैग और संविधान की इन्सल्ट करनेवालों के खिलाफ सख्त कानून हैं।
- अगर कोई शख्स झंडे को किसी के आगे झुका देता हो, उसे कपड़ा बना देता हो, मूर्ति में लपेट देता हो या फिर किसी मृत व्यक्ति (शहीद हुए आर्म्ड फोर्सेज के जवानों के अलावा) के शव पर डालता हो, तो इसे तिरंगे की इन्सल्ट माना जाएगा।
- तिरंगे की यूनिफॉर्म बनाकर पहन लेना भी गलत है।
- अगर कोई शख्स कमर के नीचे तिरंगा बनाकर कोई कपड़ा पहनता हो तो यह भी तिरंगे का अपमान है।
- तिरंगे को अंडरगार्मेंट्स, रुमाल या कुशन आदि बनाकर भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

फहराने के नियम
- सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही तिरंगा फहराया जा सकता है।
- फ्लैग कोड में आम नागरिकों को सिर्फ स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराने की छूट थी लेकिन 26 जनवरी 2002 को सरकार ने इंडियन फ्लैग कोड में संशोधन किया और कहा कि कोई भी नागरिक किसी भी दिन झंडा फहरा सकता है, लेकिन वह फ्लैग कोड का पालन करेगा।
- 2001 में इंडस्ट्रियलिस्ट नवीन जिंदल ने कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि नागरिकों को आम दिनों में भी झंडा फहराने का अधिकार मिलना चाहिए। कोर्ट ने नवीन के पक्ष में ऑर्डर दिया और सरकार से कहा कि वह इस मामले को देखे। केंद्र सरकार ने 26 जनवरी 2002 को झंडा फहराने के नियमों में बदलाव किया और इस तरह हर नागरिक को किसी भी दिन झंडा फहराने की इजाजत मिल गई।

राष्ट्रगान के भी हैं नियम
- राष्ट्रगान को तोड़-मरोड़कर नहीं गाया जा सकता।
- अगर कोई शख्स राष्ट्रगान गाने से रोके या किसी ग्रुप को राष्ट्रगान गाने के दौरान डिस्टर्ब करे तो उसके खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की धारा-3 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
- ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल की कैद का प्रावधान है।
- प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 का दोबारा उल्लंघन करने का अगर कोई दोषी पाया जाए तो उसे कम-से-कम एक साल कैद की सजा का प्रावधान है।

लेकिन आज तिरंगे की अस्मिता और सम्मान को जैसे भुला दिया गया है .... तुष्टीकरण की नीतियों ने चंद लोगों के हितार्थ तिरंगे का अपमान किसी को दिखाई नहीं दे रहा है. इसका उदाहरण अभी श्रीनगर में लाल चौक पर तिरंगा फहराने को ले कर हो रहे विवाद में साफ़ दिखाई दे रहा है. 
तिरंगे का अपमान और भी रूपों में सामने आया है. जहाँ तम्बाकू और गुटखे को निकृष्ट और जीवन के लिए घातक माना गया है वहीँ  तिरंगा नाम के गुटखे का सरकार की अनुमति से लगातार निर्माण  और बिक्री की जा रही है, गुटखे जैसी निकृष्ट चीज़ का नामकरण तिरंगे के नाम पर रखना तिरंगे का सरासर अपमान है, जब कि गुटखा खाने के बाद ये लोगों के पैरों के नीचे आता है और लोग थूकते भी हैं... यह तिरंगे का अपमान नहीं तो और क्या है. आज़ाद पुलिस को तिरंगे के नाम पर गुटखे को स्वीकृति देने के लिए और किसी तरह की रोक अथवा नाम बदलने के लिए प्रयास न करने के लिए घोर आपत्ति है. इसे तत्काल बंद होना चाहिए. 

"It will be necessary for us Indians -- Hindus, Muslims, Christians, Jews, Parsis and all others to whom India is their home -- to recognize a common flag to live and die for."
-- Mahatma Gandhi's quote on our Indian flag