आज़ाद पुलिस का मकसद पुलिस और प्रशासन में व्याप्त बुराइयों और अनियमितताओं को उजागर करना और सुधार के लिए जागरूक करना रहा है गाज़ियाबाद में पिछले दस सालों से इस मुहिम पर अपने रिक्शे सहित संघर्ष करते हुए ख़याल आया कि क्यों न देश के अन्य राज्यों और शहरों की पुलिस व्यवस्था के बारे में जाना जाय.
इस क्रम में पहला शहर मुंबई को चुना गया और मई में मुंबई जाने की मुहिम के लिए तमाम अधिकारियों सहित मुंबई सरकार तक को सूचित कर दिया गया था. २२ मई को मुंबई जाने की तिथि नियत थी लेकिन किसी अपरिहार्य कारणवश अपना वादा निभाने के लिए १७ मई को ही मुंबई जाकर अपने अभियान को अंजाम देना पड़ा.
१७ मई को अपने एक पड़ोसी और सहयोगी मनोज के साथ जनरल टिकट से मुंबई के लिए रवाना हुआ. ट्रेनों में जनरल डिब्बे का क्या हाल होता है वह केवल महसूस किया जा सकता है कह पाना कठिन है. फिर भी जाना था सो गए... सुबह ट्रेन से उतर कर मुंबई वी टी की भीड़ भाड़ और चकाचौंध देख कर शहर की तेज़ जिंदगी का एहसास हो गया. हल्का नाश्ता वाश्ता कर के हम कोलाबा पुलिस स्टेशन के लिए निकल पड़े. कोलाबा पुलिस स्टेशन में पहुँच कर जब अपना परिचय दिया और अपनी मुहिम के बारे में बताया तो पुलिस वालों ने बड़ी शालीनता और इज्ज़त से हमें बिठाया और बात की. हम अचंभित थे कि उत्तर प्रदेश की पुलिस होती तो शायद हमारा स्वागत झिडकियों और उपेक्षा से ही होता… लेकिन सब ने बड़े प्यार से बात की और बोले अगर आपको शहर में रहने खाने की व्यवस्था चाहिए तो पुलिस कमिश्नर आफिस जाना होगा.
हम वहाँ से विदा लेकर पुलिस कमिश्नर आफिस पहुँचे तो कामकाज शुरू नहीं हुआ था. संतरी ने बताया कि दस बजे आफिस खुलेगा. लेकिन तब तक हमें वहाँ बैठने दिया. आफिस खुलने पर हमें एक अधिकारी से मिलवाया गया जिसने बड़े अच्छे ढंग से बात की और हमें सुना. हमने कहा कि हम आपके शहर में अनियमित रूप से ड्यूटी करने वाले पुलिस वालों के चालान काटेंगे. और आपको सूचित करेंगे. अधिकारी ने हमारी पूरी बात सुनी और पुलिस कमिश्नर से बात की… उनके निर्देशानुसार हमें हमारे मुंबई आने के सूचना पत्र पर कार्यालय की मुहर लगा दी और कहा कि आप पूरा शहर घूमिये.. अपना काम करिये.. कोई दिक्कत हो तो ये कागज़ दिखा देना.
वहीँ बाहर भीड़ लगी हुई थी… मीडिया की गाड़ियां अटी पड़ी थीं, कुछ मीडिया वालों ने हमसे बात तो की तो उन्होंने बोला अभी हम किसी और मुद्दे पर बिज़ी हैं, मुंबई के मशहूर डॉन दाउद के भाई पर हमला हुआ है. अभी हम आपकी मदद नहीं कर सकते. हमें बड़ा आश्चर्य हुआ. हम एक अच्छे काम के लिए आये थे और मीडिया डॉन के भाई पर हमला रिकार्ड कर रहा था.
हम शहर घुमते हुए समुद्र किनारे गेटवे आफ इण्डिया पहुँच गए. इसी बीच मुंबई के एक जानने वाले देव कुमार झा जी का फोन आया. उन्होंने काफी प्रयास किया कि हमारी मुहिम को मुंबई में लोग जानें. लेकिन सब के सब कहीं और बिज़ी थे.
हम शहर की सड़क दर सड़क टहलते रहे घूमते रहे. शहर में इतनी भीड़ इतनी ट्रैफिक होने के बावजूद जिस तरह से पूरा शहर अपनी गति से चल रहा था वो हमारे लिए अचंभित करने वाला था. पुलिस वाले कम ही दिख रहे थे. जो दिख रहे थे वो अच्छे से ड्रेस पहने हुए और टोपी लगाए हुए थे… ट्रैफिक पुलिस किनारे खड़ी थी और लोग लाल बत्ती देख कर आ जा रहे थे… ऐसे में हमें चालान काटने के लिए कोई अवसर नहीं मिल रहा था. ऐसा लग रहा था हमारे आने की पूर्व सूचना पर पुलिस वाले सचेत हो चुके थे.. गाज़ियाबाद में उत्तर प्रदेश पुलिस जैसा बिंदास, दबंग और उजड्ड व्यवहार यहाँ नदारद देख कर हमारा मन मायूस हो रहा था… ये भी कोई पुलिस है ? इज्ज़त से बात करती है छिः … हमारे यू पी की पुलिस की हैसियत के आगे ये कुछ नहीं… मिनटों में पूरा का पूरा गाँव फूंक देंने वाले यूपी पुलिस के आगे तो ये कुछ भी नहीं थे... हमसे जितना घूमा गया हम घूमे, पुलिस वालों से मिले, उनकी ड्यूटी करने का ढंग देखा, लेकिन हमें बाहरी तौर पर कोई कमी नज़र नहीं आ रही थी… इसका मतलब बड़े छुपे रुस्तम थे… बड़े शातिर.., हमारे आने से पहले ही पूरी तरह से मुस्तैद और चुस्त हो चुके थे…
शाम तक घूमते घूमते हमें पता चल चुका था…हमारे पास कैमरा वगैरह नहीं था जिससे हम फोटो ले पाते लेकिन मुंबई की यादें आँखों में समेटते हुए हम शहर घूम रहे थे. ऐसा लगता था मुंबई पुलिस हमसे डर कर पहले से ही पूरी तरह तैयारी कर चुकी थी
समय कम होने के कारण हमें गाज़ियाबाद के लिए निकलना था. लेकिन हमारा मुंबई आने का वादा पूरा हो गया था. हमने जगह जगह अपनी मुहिम के बारे में बताते समझाते मुंबई वीटी आ गए जहाँ ट्रेन आने वाली थी.. जनरल डिब्बे की जगह पर आधा किलोमीटर लंबी लाइन लगी हुई थी.. हम भी लाइन में लग गए., पुलिस वाले खोजी कुत्ते को लेकर लाइन के हर व्यक्ति के पास से गुजार रहे थे, तभी ट्रेन आ गयी. हमने जैसे तैसे बोगी में घुसने में कामयाबी पाई …
हो सकता है मुंबई पुलिस में बहुत कमियाँ हों लेकिन यूपी पुलिस की तुलना में उनका व्यवहार और तरीका बेहद सुधरा हुआ और काफी बेहतर लगा…हमने मुंबई पहुँचने का वादा पूरा किया था और मुंबई पुलिस ने सुधरने का…. ट्रेन ने रेंगना शुरू किया था और मुंबई पुलिस चैन की साँस ले रही थी…
5 comments:
आपको बहुत बहुत बधाइयाँ ... हमारी शुभकामनाएं आपके साथ है !
आपको बहुत बहुत बधाइयाँ|
चलिये कहीं तो कुछ अच्छा है तुलनात्मक रूप से...
मुंबई की पुलिस थोड़ी सभ्य है.... और बहुत कायदे से बात करती है.... यह अंतर है उत्तर प्रदेश और मुंबई की पुलिस में...
Salam aapko
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एक तिनका जो डूबते देश को बचाने में लगा है... क्या आप साथ हैं?